published by saurabh
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मुंबई,(वार्ता): आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी निजी जिंदगी में बेहद दरियादिल इंसान थे और हमेशा लोगों की मदद करने में तत्पर रहते थे। साठ के दशक की शुरुआत में जब संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे थे तब उन्हें छोटे बजट की फिल्म ‘छैला बाबू’ के संगीत का जिम्मा सौंपा गया। उन दिनों मोहम्मद रफी सबसे महंगे गायक थे। उनका मेहनताना प्रति गीत करीब पांच हजार रुपए हुआ करता था। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, रफी की आवाज में एक गाना (तेरे प्यार ने मुझे गम दिया) रिकॉर्ड करना चाहते थे। उन्होंने जब पैसों की समस्या रफी को बताई तो वे बोले, ‘पैसों की फिक्र छोड़ो, गाना रिकॉर्ड करो।’ रिकॉर्डिंग के बाद रफी जाने लगे तो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने सकुचाते हुए एक लिफाफा उन्हें थमा दिया। उसमें 500 रुपए थे। रफी ने इन्हें दोनों के हाथों में रखकर कहा, यह मेरी तरफ से शगुन है। इसी तरह मिल-बांटकर काम करते रहो। पंजाब के कोटलासुल्तान सिंह गांव मे 24 दिसंबर 1924 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी ने 13 वर्ष की उम्र मे अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शको के बीच पेश किया।
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दर्शको के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होनें रफी को मुंबई आने के लिये न्यौता दिया। श्याम सुदंर के संगीत निर्देशन में रफी ने अपना पहला गाना सोनिये नी हिरीये नी गायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिये गाया। वर्ष 1944 मे नौशाद के संगीत निर्देशन मे उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना हिन्दुस्तान के हम है पहले आप के लिये गाया। वर्ष 1949 मे नौशाद के संगीत निर्देशन मे दुलारी फिल्म मे गाये गीत सुहानी रात ढ़ल चुकी के जरिये वह सफलता की उंचाईयो पर पहुंच गये और इसके बाद उन्होनें पीछे मुड़कर नही देखा। दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, शशि कपूर, राजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी अपने सिने कैरियर में लगभग 700 फिल्मों के लिये 26000 से भी ज्यादा गीत गाये। रफी ने हिन्दी फिल्मों के अलावे मराठी और तेलगू फिल्मों के लिये भी गाने गाये। मोहम्मद रफी अपने करियर में 06 बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किये गये। वर्ष 1965 मे रफी पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये। रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वाभाव के कारण जाने जाते थे लेकिन एक बार उनकी कोकिल कंठ लता मंगेश्कर के साथ अनबन हो गयी थी।
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मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ो गीत गाये थे लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी। लता मंगेशकर गानों पर रायल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी राॅयल्टी की मांग नहीं की। रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रायल्टी किस बात की मांगी जाए। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनो ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया। हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में दिल पुकारे गीत गाया। मोहम्मद रफी फिल्म देखने के शौकीन नहीं थे लेकिन कभी-कभी वह फिल्म देख लिया करते थे।एक बार रफी ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार देखी थी। दीवार देखने के बाद रफी, अमिताभ के बहुत बड़े प्रशंसक बन गये। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म नसीब में रफी को अमिताभ के साथ युगल गीत चल चल मेरे भाई गाने का अवसर मिला। अमिताभ के साथ इस गीत को गाने के बाद रफी बेहद खुश हुये थे। जब रफी साहब अपने घर पहुंचे तो उन्होंने अपने परिवार के लोगो को अपने पसंदीदा अभिनेता अमिताभ के साथ गाने की बात को खुश होते हुये बताया था। 30 जुलाई 1980 को आस पास फिल्म के गाने शाम क्यू उदास है दोस्त गाने के पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से कहा शूड आई लीव जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल अचंभित हो गये क्योंकि इसके पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नहीं की थी। अगले दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को हीं छोड़कर चले गये।
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