published by saurabh
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नयी दिल्ली,(वार्ता): उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण से कहा कि वह न्यायालय की अवमानना वाले ट्वीट को लेकर माफी नहीं मांगने वाले अपने बयान पर पुनर्विचार करें और इसके लिए उन्हें दो से तीन दिन का समय दिया गया है। शीर्ष अदालत ने श्री भूषण की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने इस मामले में होने वाली सजा की प्रकृति को किसी अन्य पीठ के पास भेजने की अपील की थी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने श्री भूषण की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से कहा कि उन्हें इस मामले में दोषी ठहराये जाने संबंधी पुनर्विचार याचिका पर जब तक कोई फैसला नहीं आ जाता तब तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी यानि उन्हें दी जाने वाली सजा लागू नहीं होगी।
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श्री भूषण ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उन्हें इस बात से पीड़ा हुई है कि उन्हें इस मामले में ‘बहुत गलत समझा गया’। उन्होंने कहा “मैंने ट्वीट के जरिये अपने परम कर्तव्य का निर्वहन करने का प्रयास किया है। ” महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए श्री भूषण ने कहा, :मैं दया की भीख नहीं मांगता हूं, और न ही मैं आपसे उदारता की अपील करता हूं। मैं यहां किसी भी सजा को शिरोधार्य करने के लिए आया हूं जो मुझे उस बात के लिए दी जाएगी जिसे कोर्ट ने अपराध माना है, जबकि वह मेरी नजर में गलती नहीं, बल्कि नागरिकों के प्रति मेरा सर्वोच्च कर्तव्य है।” गाैरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने ट्विटर पर न्यायाधीशों को लेकर की गयी टिप्पणी के लिए 14 अगस्त को उन्हें दोषी ठहराया था। श्री भूषण ने 27 जून को न्यायपालिका के छह वर्ष के कामकाज को लेकर एक टिप्पणी की थी, जबकि 22 जून को शीर्ष अदालत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे तथा चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर दूसरी टिप्पणी की थी।
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