नयी दिल्ली। वैश्विक स्तर पर काम करने वाली बड़ी कंपनियों पर करारोपण की न्यूनतम दर को लेकर शुक्रवार को एक समझौते पर 136 देशों ने सहमति जतायी। विकसित औद्योगिक देशों के पेरिस स्थित संगठन ओईसीडी-आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के तत्वावधान में लंबी बैठक के बाद इस समझौते पर आज सहमति बनी। बैठक में 140 देश शामिल थे। समझौते के तहत ऐसी कंपनियों पर न्यूनतम 15 प्रतिशत की दर से कर लगाया जाएगा और प्रत्येक देश को अपने क्षेत्र में इन कंपनियों के अर्जित राजस्व तथा लाभ पर कर लगाने का अधिकार होगा, चाहे वे वहां भौतिक रूप से उपस्थित न हों।
विश्लेषकों की राय में इससे गूगल तथा अमेजन जैसे मंचों का कर दायित्व बढ़ सकता है। मीडिया चैनलों की रिपोर्ट के अनुसार एस्टोनिया हंगरी और सबसे महत्वपूर्ण आयरलैंड इस समझौते पर आज राजी हुए। रिपोर्टों के मुताबिक आयरलैंड के रुख के कारण समझौता अटका हुआ था। वार्ता में शामिल चार देशों पाकिस्तान, श्रीलंका, केन्या और नाइजीरिया ने इस पर अभी हस्ताक्षर नहीं किए हैं। आयरलैंड के समझौते में शामिल होने के साथ ही इससे ओईसीडी और जी20 के सभी सदस्य देशों का समर्थन प्राप्त हो गया है । इस समझौते में शामिल देश विश्व अर्थव्यवस्था में 90 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं ।
यह समझौता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया के कई देश अपने यहां निवेश आकर्षित करने के लिए कर की दरें निम्न रखते हैं। इससे कर छूट की होड़ सी लगी रहती है। बड़ी कंपनियां इसका फायदा उठाने के लिए अपना लाभ उन देशों में दिखाती थीं, जहां कर की दरें बहुत कम होती हैं। इससे सरकारों के राजस्व की हानि होती थी और अर्थव्यवस्थाओं पर प्रतिकूल असर होता है। नए समझौता दो स्तंभों पर खड़ा किया गया है।
इसमें पहला एक न्यूनतम कर का स्तंभ है जो 15 प्रतिशत रखा गया है। इसके अलावा सदस्य देशों को अपने क्षेत्र में बड़ी अंतरराष्ट्रीय इन्टरनेट कंपनियों के अर्जित किए गए लाभ के एक हिस्से पर कर लगाने का अधिकार प्राप्त होगा। अमेरिका में बिडेन सरकार के गठन के बाद वैश्विक न्यूनतम कर की पहल को एक गति मिली। अमेरिकी प्रशासन के सहयोग से न्यूनतम वैश्विक कर के प्रस्ताव को शक्तिशाली जी7 समूह का समर्थन प्राप्त हुआ और जुलाई में इस पर मोटी सहमति बन गई थी, हालांकि उस समय आयरलैंड इससे सहमत नहीं हुआ था।