कोरोना के चलते ‘कजली महोत्सव’ की सदियों पुरानी परंपरा इसबार टूट गई

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published by saurabh

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महोबा,(ST News): वैश्विक महामारी कोरोना के दुष्प्रभाव के चलते उत्तर प्रदेश की वीरभूमि महोबा में ‘कजली महोत्सव’ की सदियों पुरानी परम्परा इसबार टूट गई। चंदेलों के शौर्य और पराक्रम की गौरवगाथा को अपने मे समेटे ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के अति प्राचीन व भव्य आयोजन आज 839 वीं वर्षगांठ पर औपचारिकताओ का निर्वहन करते हुए परंपरागत रीति रिवाज के साथ सम्पन्न करा दिया गया। इसके साथ ही यहां पूरे क्षेत्र में भाई बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन का त्योहार भी मनाया गया। कजली महोत्सव का आयोजक महोबा विकास एवम संरक्षण समिति के अध्यक्ष जिलाधिकारी अवधेश कुमार तिवारी ने बताया कि कोविड 19 के कारण सभी प्रकार के सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यक्रम एवं सार्वजनिक समारोह के आयोजन पर पूर्णतया रोक होने के कारण इस बार महोबा के विख्यात कजली महोत्सव के आयोजन को पूर्व में ही निरस्त कर दिया गया था।

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इसके साथ ही यहां आयोजित होने वाली कजली की शोभायात्रा स्थगित कर दी गई थी तथा सभी तरह के अन्य कार्यक्रम भी स्थगित कर दिए गए थे,लेकिन इस क्षेत्र में कजली के धार्मिक महत्व व इसके विसर्जन उपरांत ही रक्षा बंधन का त्योहार मनाए जाने की परंपरा को दृष्टिगत रख सम्पूर्ण कार्यक्रम औपचारिक ढंग से पूरित कराया गया। जिलाधिकारी ने बताया कि कोविड को लेकर शासन द्वारा जारी गाइड लाइन का अनुपालन कराते हुए आयोजन में भीड़भाड़ को रोक केवल पांच महिलाओं को कीरत सागर में जाकर कजली विसर्जन की प्राचीन परंपरा निर्वहन कराई गई। इसके साथ सरोवर में आल्हा परिषद द्वारा धार्मिक अनुष्ठान व दीपदान कार्यक्रम को भी सम्पादित कराया गया। कीरत सागर सरोवर तट में सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में सुरक्षा बलों को पहले से ही तैनात किया गया था,ताकि वह किसी प्रकार की भीड़भाड़ न हो। कोरोना के संक्रमण का डर तथा मेला क्षेत्र में रहने वाले झूला, खेल तमाशे व दुकान गायब होने के कारण लोगो की वैसे भी इस ओर रुचि नहीं रही। गौरलतब है कि 838 सालों में यह पहला मौका है जब महोबा में कजली महोत्सव का आयोजन किसी खास वजह से इस वर्ष निरस्त हुआ है। मातृ भूमि की आन-बान एवं शान तथा नारी सम्मान के लिए महोबा के चंदेल राजा परमाल की सेना द्वारा सन 1182 में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान की सेना के साथ लड़े गए ऐतिहासिक युद्ध की यादगार में महोत्सव का आयोजन होता है। इस युद्ध में चंदेल शूर वीरों आल्हा व ऊदल के अप्रतिम शौर्य एव पराक्रम के सामने चौहान सेना को बुरी तरह से मुहकी खानी पड़ी थी। कजली महोत्सव यहां सावन की पूर्णिमा के दूसरे दिन से आरम्भ होकर विजय उत्सव के रूप में सात दिन तक अनवरत चलता है। मेले के पहले दिन कजली की शोभायात्रा को देखने के लिए प्रतिवर्ष यहां लाखो की संख्या में भीड़ उमड़ती है। यही वजह है कि महोबा का कजली महोत्सव न/न सिर्फ देश दुनिया मे चर्चित है बल्कि यह उत्तर भारत के सबसे प्राचीन व विशाल मेले के रूप में विख्यात है।

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