लालजी टंडन: सभासद से संसद फिर राजभवन तक ऐसा रहा सफर

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Published by s.v.singh ujagar

मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का मंगलवार सुबह निधन हो गया. 85 वर्षीय लालजी टंडन काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. राजनीति में सभासद से संसद और राजभवन तक सफर तय करने वाले लालजी टंडन के जीवन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का काफी असर रहा.

मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का मंगलवार सुबह निधन हो गया. 85 वर्षीय लालजी टंडन काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. राजनीति में सभासद से संसद और राजभवन तक सफर तय करने वाले लालजी टंडन के जीवन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का काफी असर रहा. बसपा सुप्रीमो मायावती उन्हें अपना भाई मानती थीं और उन्हें राखी बांधती रही हैं.

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लालजी टंडन खुद कहा करते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका अदा की है. अटल के साथ उनका करीब 5 दशकों का साथ रहा. इतना लंबा साथ अटल का शायद ही किसी और राजनेता के साथ रहा हो. यही वजह रही कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को लखनऊ में टंडन ने ही संभाला था और सांसद चुने गए थे.

बचपन से ही संघ के साये में

लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल 1935 में हुआ था. अपने शुरुआती जीवन में ही लालजी टंडन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे. उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की. इसके बाद 1958 में लालजी का कृष्णा टंडन के साथ विवाह हुआ. उनके बेटे गोपाल जी टंडन इस समय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं. संघ से जुड़ने के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी मुलाकात हुई. लालजी शुरू से ही अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीब रहे.

जेपी आंदोलन में हुए शामिल

लालजी टंडन का राजनीतिक सफर साल 1960 में शुरू हुआ. उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन में भी बढ़-चढकर हिस्सा लिया था. इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. टंडन दो बार पार्षद चुने गए और दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे. 1978 से 1984 तक और 1990 से 1996 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के सदस्य रहे. इस दौरान 1991-92 की उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार में मंत्री बने.

यूपी की राजनीति में प्रयोग

लालजी टंडन को उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई अहम प्रयोगों के लिए भी जाना जाता है. 90 के दशक में प्रदेश में बीजेपी और बसपा की गठबंधन सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है. इसके बाद लालजी 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. बसपा सुप्रीमो मायावती उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानती थीं और राखी भी बांधा करती थीं. 1997 में वह प्रदेश के नगर विकास मंत्री रहे.

संभाली अटल की विरासत

साल 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीति से दूर होने के बाद लखनऊ लोकसभा सीट खाली हो गई. इसके बाद भाजपा ने लालजी टंडन को ही यह सीट सौंपी. लोकसभा चुनाव में लालजी टंडन ने लखनऊ लोकसभा सीट से आसानी से जीत हासिल की और संसद पहुंचे. लालजी टंडन को साल 2018 में बिहार के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और फिर कुछ दिनों के बाद मध्यप्रेदश का राज्यपाल बनाया गया था.