published by saurabh
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नयी दिल्ली(वार्ता): भारतीय रेलवे ने कोविड-19 महामारी के दौरान यात्री गाड़ियों के परिचालन पर रोक का फायदा उठाकर देश में मालवहन के क्षेत्र में जबरदस्त वापसी की है। चार माह में रेलमार्गाें के लंबित 200 से अधिक अनुरक्षण कार्यों को द्रुतगति से पूरा करके मालगाड़ियों की औसत गति में दोगुनी वृद्धि करने एवं लॉजिस्टिक्स की लागत को घटाने में कामयाबी हासिल की है। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव तथा रेलवे एवं वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने एक संयुक्त वर्चुअल संवाददाता सम्मेलन में बताया कि रेलवे ने लॉकडाउन के दौरान चार माह में 200 से अधिक अनुरक्षण कार्यों को पूरा करके गाड़ियों की गति बढ़ाने का काम किया। ये अनुरक्षण कार्य अरसे से लंबित थे। यात्री गाड़ियों के परिचालन शुरू में बंद रहने और बाद में सीमित मात्रा में खुलने से रेलवे को मालवहन के क्षेत्र में अपने ग्राहकों का विश्वास जीतने का अनोखा मौका मिला और रेलवे ने इसका पूरा लाभ उठाया। श्री यादव ने बताया कि 27 जुलाई 2020 को रेलवे ने गत वर्ष इसी तारीख की तुलना में 3.13 टन अधिक माल लोड किया। उन्होंने बताया कि 27 जुलाई को मालगाड़ियों की औसत रफ्तार 46.16 किलोमीटर प्रतिघंटा हो गयी जबकि जुलाई माह में यह आंकड़ा 45.03 किलोमीटर प्रतिघंटा था।
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वर्ष 2019 में जुलाई माह में मालगाड़ियों की औसत गति 23.22 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। उन्होंने बताया कि पश्चिम मध्य रेलवे में मालगाड़ियों की औसत गति 54.23 किलोमीटर प्रतिघंटा रही। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में यह आंकड़ा 51 और पूर्व मध्य रेलवे में 50.24 किलोमीटर प्रतिघंटा रहा। सबसे कम औसत गति 41.78 किलोमीटर प्रतिघंटा पूर्वी तटीय रेल ज़ोन में रही। रेलवे बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार पार्सल ट्रेनों चलाने की योजना सफल रही है। इससे बहुत छोटे छोटे पैकेटों की बुकिंग संभव हुई। फल, सब्जी, अखबार जैसे सामानों की बुकिंग बढ़ी है। उन्होंने कहा कि कोविड़ की समाप्ति के बाद भी पार्सल ट्रेन के परिचालन समेत माल ढुलाई के क्षेत्र में उठाये गये नये कदम जारी रहेंगे। जीरो बेस टाइम टेबल के जरिये अलग अलग कॉरीडोर बनाये जाएंगे। यात्री गाड़ियों के लिए कॉरीडोर, मालगाड़ियों के लिए अलग कॉरीडोर और अनुरक्षण कॉरीडोर। उन्होंने यह भी कहा कि मालगाड़ियाें की कोविड काल में बढ़ी हुई औसत गति को भविष्य में भी बरकरार रखा जाएगा। उत्तर रेलवे एवं उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक राजीव चौधरी ने बताया कि उत्तर रेलवे ने इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गत वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक माल ढुलाई की है। मालवहन को आसान बनाने के लिए सिंगल विंडो यानी एकल खिड़की योजना शुरू की गयी है ताकि ग्राहकों के मुद्दों एवं शिकायतों का एक ही मेज पर समाधान किया जा सके। मालभाड़े की दरें युक्ति संगत बनायी गयीं हैं और लॉन्ग हॉल गाड़ियों के परिचालन से लागत में कमी लायी जाएगी। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में विशेष सचिव पवन अग्रवाल ने कहा कि देश में लॉजिस्टिक की लागत 13 से 15 प्रतिशत के बीच है जबकि विश्व में यह तीन प्रतिशत के आसपास है। भारत में इसे पांच प्रतिशत तक लाये जाने का लक्ष्य है। इस प्रकार से करीब दस लाख करोड़ रुपए की बचत होगी जिसे ढांचागत विस्तार पर खर्च किया जा सकता है। उन्होंने रेलवे की उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि रेलवे ने लॉजिस्टिक्स की लागत कम करने की दिशा में अहम योगदान दिया है और उसने संकट के इस समय में कारोबार जगत का विश्वास जीता है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि लॉजिस्टिक्स की लागत घटाने के लिए ट्रकों के लिए ग्रीन कॉरीडोर बनाने और औसतन एक ट्रक के प्रतिदिन परिचालन 250-300 किलोमीटर से बढ़ा कर 700-750 किलोमीटर तक लाने की जरूरत है। समुद्र तटीय मालवहन और नदी जल मालवहन को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है।
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