published by saurabh
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मथुरा(ST News): समूचे ब्रज मंडल में राधाष्टमी उतने ही जोश और खरोश से मनाई जाती है जितनी उत्साह और उमंग से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, इसीलिए राधाष्टमी पर ब्रज मण्डल की डार डार और पात पात से राधे राधे की प्रतिध्वनि गूंजने लगती है। मथुरा हो या वृन्दावन, रावल हो या बरसाना, गोवर्धन हो या महाबन अथवा संकेत सभी तीर्थस्थलों में राधारानी का जन्म बड़े ही जोश खरोश से इसलिए मनाया जाता है कि राधा श्रीकृष्ण की आद्या शक्ति हैं। मशहूर भागवताचार्य रसिक बिहारी विभू महराज का कहना है कि श्रीकृष्ण की शक्ति ही राधा हैं तभी तो सात साल के कान्हा द्वारा गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली में सात दिन सात रात धारण करने का जब रहस्य पूछा गया तो श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘कछु माखन को बल भयो, कछु गोपन करी सहाय। राधे जू की कृपा से गिरवर लियो उठाय।’ उन्होंने बताया कि राधे जी की कृपा के महत्व को देवगणों ने भी स्वीकार किया है तभी तो स्वयं राधा से पूछा जाता है कि ‘राधे तू बड़ भागिनी कौन तपस्या कीन। तीन लोक तारन तरण जो तेरे आधीन।’ राधा नाम ही भव सागर को पार कराने वाला है तभी तो कहा गया है ‘राधे राधे जपो चले आएंगे बिहारी।’ विभू महाराज ने कहा कि इस बार भी 26 अगस्त को राधाष्टमी पूरे जोश से ब्रज में मनाई जाएगी। उनका कहना था कि यद्यपि राधारानी का जन्म ब्रज के रावल ग्राम में उनके ननिहाल में हुआ था पर राधाष्टमी उनके पैतृक गांव बरसाने में इतने जोश से मनाई जाती है कि बरसाने की पहचान राधारानी से हो गई है। रसिक बिहारी विभू महराज ने कहा कि ब्रज के कण कण में राधा जी हैं तथा करोनावायरस का संक्रमण ब्रजवासियों के जोश को कम नही कर सकता। भले ही राधाष्टमी पर ब्रज के अधिकांश मंदिरों में श्रद्धाुलुओं का प्रवेश इस वर्ष निषेध कर दिया गया हो पर एक बात निश्चित है कि करोनावायरस का राधाष्टमी के विधि विधान से मनाने पर कोई असर पड़नेवाला नही है। राधारानी का जन्म मूल नक्षत्र मे हुआ था इसलिए बरसाना के लाड़ली मन्दिर में कार्यक्रम की शुरूवात मूलशांति से होती है।
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किशोरी जू के जन्म एवं मूल शांति का कार्यक्रम चूंकि तडके चार बजे शुरू होता है इसलिए बरसाना में तीर्थयात्रियों का हजूम एक दिन पहले से जुड़ जाता है किंतु इस बार प्रतिबंधों के कारण यह हजूम नही जुड़ेगा । मूल शांति 27 कुओं के जल, 27 पेड़ों की पत्ती, 27 मीटर के पीले वस्त्र, 56 जड़ी बूटियों, नीलम, मूंगा, पन्ना, मोती, तांबे के नाग और नागिन एवं कोरे घड़े की सहस्त्रधारा से होगी। किशोरी जू का अभिषेक सवा कुंतल दूध, दही,शहद, घी, बूरे से किया जाता है जो बाद में भक्तों में वितरित किया जाता है। राधारानी का स्मरण तो ब्रजवासी उठते बैठ ते इसलिए करते हैं कि उनका मानना है कि राधारानी का अवतरण जनजन के कल्याण के लिए हुआ है तथा उनकी कृपा से ‘जा तन की झाईं पड़े, श्याम हरित द्रुति होय’ का चमत्कार हो जाता है तो उनके प्रसन्न होने पर मोक्ष की प्राप्ति अवश्यमभावी है। मूलशांति के बाद बधाई गायन और राधाजन्म की खुशी में खिलौने, बर्तन, वस्त्र, मिठाई तथा रुपए लुटाने की होड़ सी लग जाती है। उधर स्वर्ण पालने में राधा जी के दर्शन होते हैं। इसके बाद भक्ति संगीत के साथ ही गहवर वन की परिक्रमा होती है। वृन्दावन में तो राधे राधे की गूंज हर पल होती रहती है तभी तो वहां पर बात बात में राधे राधे होती रहती है। राधाष्टमी पर ब्रज के मंदिरों का दधिकानां देखते ही बनता है। वृन्दावन में राधाष्टमी पर अपरान्ह एक बजे राधाबल्लभ मंदिर में गोस्वामियों का दधिकाना राधा जन्म पर खुशी का जीवन्त प्रस्तुतीकरण है। एक ओर उन पर हल्दी मिश्रित दही डाला जाता है तो दूसरी ओर मंदिर का वातावरण ‘राधाप्यारी ने जनम लियो है , कुंवर किशोरी ने जनम लियों है’ है से गूंज उठता है। राधा दामोदर मंदिर में इस अवसर पर भक्तों पर हल्दी मिश्रित दही की होली सी हो जाती है तो राधा श्यामसुन्दर मंदिर में राधारानी के हृदयकमल से प्रकटित विग्रह का 11 मन दूध, 6 मन दही, 3मन बूरा, डेढ़ मन घी एवं 30 किलो शहद से भव्य अभिषेक दोपहर 12 बजे होता है। शाम को छप्पन भोग के दर्शन और महाआरती होती है। इस मंदिर में राधारानी के छठी पूजन में 111 साडियां, जेवरात, बर्तन, रुपया और फल लुटाए जाते हैं। बांके बिहारी मंदिर वैसे तो श्रीबिहारी जी की नित्य निकुंज सेवा में ताली तक बजाना मना है लेकिन वर्ष में एक बार राधाष्टमी के दिन मंदिर की चैक में ‘बैनी गूंथन’ लीला होती है। शाम को मंदिर से भव्य चाव निकलती है जो शहर से होती हुई निधिवनराज पहुंचती है। इसमें गोस्वामी वर्ग समाज गायन करते चलता है तो कुछ लोग राधाजन्म की खुशी में नृत्य करने लगते हैं। निधिवनराज में आधी लीला पूरी होती है। आधी लीला के निधिवनराज में पूरी होने के संबंध में बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी ने बताया कि श्री जी का श्रंगार करने के बाद श्रीबिहारी जी उन्हें लेकर निकुंज लीला में प्रवेश कर गए और श्री जी के प्रतिबिंबस्वरूप श्री ललिता जी को प्रकट किया। इसी भाव को परिलक्षित कराने के लिए आधी बैनी गूंथन लीला निधिवनराज में होती है। मथुरा के केशवदेव मंदिर में मुख्य श्रीविग्रह को राधारानी का स्वरूप प्रदान किया जाता है। राधारानी का जन्म उनके ननिहाल रावल में होने के कारण वहां पर प्रात 4 बजे से अभिषेक के साथ बधाई गायन शुरू हो जाता है तथा राधा जन्म की खुशी में लोग नृत्य कर उठते हैं। दोपहर बाद मंदिर के बाहर मेला सा लग जाता है। कुल मिलाकर राधा अष्टमी पर समूचा ब्रजमंडल राधामय हो जाता है।
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