published by saurabh
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इटावा,(ST News): आजादी के आंदोलन में चंबल इलाके में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले चकरनगर स्टेट के राजा निरंजन सिंह जूदेव का परिवार बबूल की लकड़ियां काट कर गुजारा कर रहा है ।
उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित चकरनगर के किले की हर ईंट 1857 की क्रांति के इतिहास की गवाही दे रही है। इटावा के के.के. पीजी कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रमुख डॉ. शैलेंद्र शर्मा ने यूनीवार्ता को बताया कि अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीतियों और अत्याचार के खिलाफ 1857 में क्रांति का बिगुल बजा था। उस वक्त भरेह रियासत के राजा रूप सिंह और चकरनगर रियासत के राजा निरंजन सिंह जूदेव ने बीहड़ में बगावत की मशाल जलाई थी। एक तरफ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजी हुक्मरानों से लोहा ले रही थी तो दूसरी ओर राजा निरंजन सिंह अपने दो वफादार जंगली और मंगली के साथ अंग्रेजों को पीछे धकेलने के लिए सेना तैयार कर रहे थे। इसी दौर में देश की तमाम रियासतों में अंग्रेजों से संधि कर के प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उनकी अधीनता भी स्वीकार की। ऐसे में निरंजन सिंह जूदेव की मातृभूमि के प्रति दीवानगी देख रानी लक्ष्मीबाई काफी प्रभावित हुई और उनसे मिलने चकरनगर पहुंची। रानी का समर्थन मिलने के बाद निरंजन सिंह ने अपनी बगावती गतिविधियों को और तेज कर दिया । उन्होंने अंग्रेजों की बढ़ती गतिविधियों के चलते सिकरोड़ी के राजा राव हरेंद्र सिंह से मिलकर इटावा में अंग्रेजों के वफादार कुंवर जोर सिंह व सरकारी अधिकारी को हटाने की मुहिम छेड़ दी । गुलामी के काले दिनों से लेकर आजादी के उजाले तक तमाम यादें समेटे राजा निरंजन सिंह का किला आज खंडहर बन चुका है।
राजा निरंजन सिंह जूदेव के वंशज हरिहर सिंह चौहान ने बताया कि आजादी के बाद देश की सरकार बनी तो इस रियासत की तरफ से नजर फेर लिया गया। प्रशासन की उपेक्षा के शिकार महल को ना तो संरक्षित करने का प्रयास किया गया ना ही महान स्वतंत्रता सेनानी के परिवार को किसी तरह की सहायता दी गई । महल वीरान खंडहर बन चुका है और परिवार बबूल की लकड़ियां काट कर किसी तरह गुजारा कर रहा है। रियासत की बची हुई बीहड़ की जमीन पर महज 10 फ़ीसदी हिस्सा खेती योग्य है । बाकी जमीन पर विलायती बबूल के जंगल लगे हुए हैं। रुंधे हुए गले से हरिहर सिंह ने बताया कि बगावत के दिनों में इस जंगल में पूर्वजों का सिर छिपाने की पनाह दी थी अब हमारे पेट वाले का साधन बना हुआ है । राजा भरेह राजा कुंवर रूप सिंह ने शेरगढ़ घाट पर नावो का पुल बनवाया । इस कार्य में निरंजन सिंह ने विशेष योगदान किया 24 जून 1857 को इसी पुल शेरगढ़ यमुना नदी से होकर झांसी के क्रांतिकारियों ने औरैया तहसील को लूटा था। छह सितंबर 1857 को अंग्रेजी फौज ने भरे से चकरनगर तक कच्ची सड़क बनवा कर चकरनगर राज महल पर हमला कर उसे कब्जे में ले लिया । तब राजा निरंजन सिंह ने अपने परिवार सहित बीहड़ों में शरण ली और लड़ाई जारी रखी। अधीनता में अंग्रेजो ने महल को अपनी फौजो के लिये स्थायी छावनी में तब्दील कर दिया । यही नहीं राजा की सेना को रोकने के लिए पैसों में फौजी चौकी भी स्थापित करवा दी । बीहड़ के जंगलों में छुपकर राजा निरंजन सिंह 1860 तक अंग्रेजों के दांत खट्टे करते रहे 1860 में अंग्रेजों ने धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उसी साल उन्हें काला पानी की सजा दी ।
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