बुलंदशहर में सिर्फ पांच महिलायें ही लांघ सकेंगी विधानसभा की दहलीज

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बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में आजादी के बाद से अब तक हुए विधानसभा के चुनावों में केवल पांच महिलाओं को ही विधायक बनने का सौभाग्य मिला है।
इनमें से केवल कांग्रेस के टिकट पर 1985 में डिबाई सीट से जीती हितेश कुमारी को नारायण दत्त तिवारी मंत्रिमंडल में उप मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिला था।
ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण बुलंदशहर जिला राजनीति के लिहाज से भी पश्चिम उत्तर प्रदेश में खास पहचान रखता है। गंगा-यमुना के दोआब में बसे इस जिले की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कृषि पर आधारित है। गेहूं आलू की फसल के साथ गन्ना और धान भी इस जिले की प्रमुख फसलों में शामिल है।
1957 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर सत्यवती रावल महिला विधायक के रुप में दादरी विधानसभा सीट से जीत कर विधानसभा पहुंची, उस समय दादरी बुलंदशहर जिले का हिस्सा था। बाद में इसे गाजियाबाद जिले से जोड़ दिया गया और वर्तमान में यह सीट गौतम बुध नगर जिले के अंतर्गत आती है।
सत्यवती रावल के बाद 2017 तक जितने भी चुनाव हुए, क्षेत्र की जनता ने किसी भी महिला को चुनकर विधानसभा में नहीं भेजा। 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर श्रीमती हितेश कुमारी डिबाई विधानसभा सीट से जीत कर विधानसभा में पहुंची और बाद में नारायण दत्त तिवारी की सरकार में सिंचाई उपमंत्री भी रही। 2012 में भाजपा के टिकट पर विमला सिंह सोलंकी सिकंदराबाद सीट से विधायक चुनी गई जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में विमला सिंह सोलंकी दोबारा भाजपा के टिकट पर सिकंदराबाद से और डॉ अनीता सिंह लोधी भाजपा के टिकट पर डिबाई विधानसभा से विधायक चुनी गयी।
2020 में बुलंदशहर विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा की उषा सिरोही विधायक बनी इससे पूर्व उनके पति प्रदेश के पूर्व मंत्री विरेंद्र सिंह सिरोही 2017 में इस सीट से जीते थे। उनके निधन से रिक्त हुई सीट पर भाजपा ने उषा सिरोही को मैदान में उतारा। वर्तमान में जिले की सात में से तीन सीटों पर महिला विधायक है। 2022 के चुनाव में भाजपा अपनी तीनों महिला विधायकों को टिकट देगी या नहीं यदि टिकट मिलता भी है तो मतदाता इनमें से किस को वोट देकर फिर से विधानसभा पहुंचाएंगे यह भविष्य के गर्भ में है।