नयी दिल्ली। कृषि आयुक्त एस के मल्होत्रा ने लोगों को सुरक्षित फल, सब्जी और खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए फसलों पर जैविक कीटनाशकों के प्रयोग पर जोर दिया है। डॉ मल्होत्रा ने आज भारतीय कृषि रसायन महासंघ के चौथे वार्षिक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि किसानों को ग्रीन कीटनाशाकों का फसलों पर उपयोग करना चाहिए जो मानव स्वास्थ्य के लिए कम खतरनाक हैं।
इसके साथ ही ये पशुओं और पर्यावरण के अनुकूल हैं। उन्होंने कहा कि देश से बड़े पैमाने पर फलों और सब्जियों का निर्यात किया जाता है जिसके कारण भी इनमें कीटनाशकों का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश से बड़े पैमाने पर कीटनाशकों का निर्यात किया जाता है जिसके करण भी इसकी गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होनी चाहिए।
डॉ मल्होत्रा ने कहा कि देश में खाद्यान्न और बागवानी फसलों का रिकार्ड उत्पादन हो रहा है और इसके गुणवत्तापूर्ण होने पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि रसायन उद्योग को समस्याओं के साथ उसका समाधान लेकर आना चाहिए जिससे मामलों को जल्दी सुलझाया जा सके। रसायन उद्योग का निबंधन तेजी से करने का प्रयास किया जा रहा है और इस सम्बन्ध में उद्योगों से जो जानकारी मांगी जाती है उसका जल्दी जवाब दिया जाना चाहिए।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अतिरिक्त महानिदेशक एस सी दुबे ने कहा कि खर पतवार, व्याधियों तथा कीटों के कारण 10 से 30 प्रतिशत तक फसलों का नुकसान होता है। यह क्षति फसलों के तैयार होने और उसके बाद भी होती है। इस क्षति को यदि रोक दिया जाये तो किसानों की आय आसानी से दोगुनी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि बिना रसायन फसल संरक्षण संभव नहीं है लेकिन कीटनाशकों के दुष्प्रभाव को कम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि कीटनाशकों की हर वर्ष वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर समीक्षा की जानी चाहिए। महासंघ के अध्यक्ष एन के अग्रवाल ने कहा कि देश में कीटनाशकों का व्यापार सालाना 20 हजार करोड़ रुपये का है जबकि 40 हजार करोड़ रुपये के कीटनाशकों का निर्यात किया जाता है।
उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के प्रभाव को लेकर विदेशी गैर सरकारी संगठन समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं। किसानों में शिक्षा की कमी है, जिसके कारण वे कई बार बहकावे में आ जाते हैं।