पाक-अफगान बॉर्डर लगा हथियारों का बाजार दशकों के बाद धंधा तेज

अंतर्राष्ट्रीय

अफगानिस्तान। अमेरिकी नेतृत्व वाली नाटो सेनाओं की वापसी के बाद हथियार तस्करों को दशकों बाद कारोबार में तेजी की आस है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच 2600 किलोमीटर लंबी सीमा के दोनों ओर हथियार कारोबारियों ने अपने कॉन्टेक्ट्स से फिर संपर्क करना शुरू कर दिया है। पाक-अफगान बॉर्डर पर पिछले कई दशकों से कोई कानून नहीं रहा है। यहां कबिलाई लड़ाकू कानून ही चलता है।
खैबरपख्तूनख्वाह से जुड़े इस इलाके में अमेरिकी एम-4 पिस्तौल हो या फिर अन्य कोई भी हथियार, ऑर्डर देते ही हाथों-हाथ डिलीवरी होती है। यहां चीनी हथियार और दर्रा आदम खेल में अपनी फैक्ट्री में बनने वाले हथियार भी हैं। इन्हें पाक-अफागानिस्तान बॉर्डर पर बुश बाजार में बेचा जाता है। 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में सेनाएं भेजी थीं तभी से इसका नाम बुश बाजार पड़ा। अब इसे सितारा-जहांगीर बाजार के नाम से भी जाना जाता है।

वीडियो कॉल पर बुकिंग, बहुत कम समय में डिलीवरी
पाक-अफगान बॉर्डर पर हथियार बचने वाले अहमद आजकल अपने स्मार्ट फोन पर वीडियो कॉल पर बुकिंग करते हैं। अहमद कहते हैं जिस भी हथियार की डिमांड हो उसे हम खरीदार को बहुत कम ही समय में उपलब्ध करा देते हैं। लगभग दो दशक से हथियारों के कारोबार से जुड़े अहमद कहते हैं कि आने वाले दिनों में और तेजी आने की उम्मीद है।

मेड इन चाइना हथियार भी उपलब्ध, सस्ते हैं पर भरोसेमंद नहीं
हथियारों के एक सप्लायर खालिद का कहना है कि बुश बाजार में अमेरिकी हथियारों सहित चीनी हथियारों भी उपलब्ध हैं। खालिद का कहना है कि लगभग दो दशक पहले तक सोवियत हथियारों को भी बेचा जाता था लेकिन अब ये हथियार नहीं मिलते है। अब चीन के हथियार भी बुश बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं ये सस्ते जरूर हैं लेकिन कतई भरोसेमंद नहीं हैं।

कराची से अफगान आने वाले कंटेनरों से पहाड़ी में लूट 
नाटो सेनाएं जब अफगानिस्तान में तैनात थीं उस दौर में हथियारों की खेप पाकिस्तान के बंदरगाह कराची पहुंचती थी। यहां से जखीरे को कंटेनरों में भरकर सड़क मार्ग से खैबरपख्तूनख्वाह होकर अफगानिस्तान के नाटो बेस पर पहुंचाया जाता था। इसी मार्ग पर घात लगाए लड़ाके कंटेनरों को लूट लेते थे। कई बार तो नाटो बेस पर पहुंचने वाले कंटेनर आधे होते अथवा पहुंच नहीं पाते थे।