कहां है विकास :  जब जिंदा या मुर्दा पकड़ने का था आदेश तो 19 साल तक  क्या करती रही पुलिस !

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विकास दुबे पर पुलिस के आला अधिकारियों से लेकर कई बड़े नेताओं का था संरक्षण 

ब्यूरो रिपोर्ट/ publish by s v ujagar

लखनऊ। सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद चर्चा में आए विकास दुबे का खौफ 19 साल पहले भी कम नहीं था। शिवली थाने में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ल की हत्या के बाद तत्कालीन सरकार ने उसे हर हाल में जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश दिया था पर इसके बावजूद पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई थी। बाद में वह पुलिस को गच्चा देकर अदालत में हाजिर हो गया था। बात यहीं तक खत्म नहीं हुई बल्कि घटना के चश्मदीद 16 सिपाही, दरोगा, विवेचक अदालत में मुकर गए। इसका परिणाम यह हुआ कि साक्ष्य के अभाव में विकास दुबे कोर्ट से बरी हो गया। एक तरह से संतोष शुक्ल की हत्या से लेकर विकास की गिरफ्तारी व पैरोकारी तक पुलिस की भूमिका ”सरेंडर” की रही।

12 अक्तूबर-2001 को शिवली थाने में तत्कालीन श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन (राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त) की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में संतोष शुक्ल के भाई मनोज ने विकास और उनके भाइयों सहित नौ के खिलाफ नामजद व 7-8 अज्ञात के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार संतोष शुक्ल की हत्या ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने संतोष शुक्ल के घर पर आकर पीड़ित परिवारीजनों को सांत्वना दी थी। सीएम के सख्त निर्देश के बावजूद विकास पुलिस पकड़ से दूर रहा। घटना के चार महीने बाद उसने समर्पण किया था। विवेचक से लेकर इस मामले के सभी खाकी वर्दीधारी अदालत में बयान के दौरान मुकर गए थे। इसका प्रतिफल यह हुआ कि वर्ष 2006 में विकास दुबे कानपुर देहात की अदालत से बरी हो गए थे।

 चौबेपुर में दर्ज हुआ था मुकदमा

हत्या का मामला शिवली थाने में दर्ज न होकर चौबेपुर में हुआ था क्योंकि घटना को अंजाम देने के बाद थाने का पूरा अमला भाग गया था। बाद में मामले को शिवली थाने में हस्तांतरित किया गया था। तबके शिवली थानेदार मनोज चतुर्वेदी घटनावाले दिन आगरा में वीवीआईपी ड्यूटी पर थे।

पुलिस न मुकरती तो पहले ही पड़ चुका होता गले में फांसी का फंदा 

मनोज शुक्ल ने बिकरू में गुरुवार को देररात दिल दहलाने वाली हुई घटना की चर्चा करते हुए बताया कि तब घटना के चश्मदीद गवाह शिवाली थाने के सिपाही, दरोगा अपने बयान से न मुकरते तो विकास दुबे को फांसी तक की सजा हो सकती थी पर हत्या की चश्मदीद गवाह पुलिस मुकर कर गई और विकास ने गुरुवार की रात एक सीओ, थानाध्यक्ष सहित आठ खाकी वर्दीधारियों की हत्या करके एक बार फिर सनसनी फैला दी है।

राजनीतिक पैठ के कारण सरकार नहीं गई हाईकोर्ट

पत्नी रिचा लड़ी थी सपा से चुनाव

विकास दुबे की सपा और बसपा में खासी पकड़ रहती थी। इलाकाई लोगों का कहना है कि बसपा शासनकाल में तो विकास की दखलंदाजी थाना-चौकी की तैनाती चलती थी। इसी के चलते उसकी शिवली और चौबेपुर थानाक्षेत्रों में ठीकठाक पैठ बनी रहती थी। राजनीतिक व पुलिस दोस्ती के चलते राज्यमंत्री संतोष शुक्ल हत्याकांड में सरेंडर किया। अदालत में गवाहों के मुकरने पर बरी हुआ तो सरकार इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय गई ही नहीं।

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