published by saurabh
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नयी दिल्ली,(वार्ता): मृदुभाषी, सौम्य, सादगीपूर्ण और ईमानदार छवि के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों तथा धारा 35 ए को खत्म करने की पहली वर्षगांठ के ठीक अगले दिन श्री सिन्हा को गिरीश चंद्र मुर्मू की जगह जम्मू-कश्मीर का नया उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है। नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया था। श्री सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र नेताओं में एक हैं और मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में संचार और रेल राज्यमंत्री जैसे प्रमुख पद पर रहे। तीन बार के सांसद श्री सिन्हा पिछला आम चुनाव उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से हार गये थे। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में भाजपा की राजनीति के बड़े चेहरे श्री सिन्हा छात्र राजनीति से उभर कर आए हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र संघ अध्यक्ष बनकर उन्होंने राजनीति जीवन शुरू किया। अपनी अद्भुत प्रशासनिक क्षमता, जुझारू और ईमानदार छवि के बूते वह केंद्रीय मंत्री बने। श्री सिन्हा पर श्री मोदी का काफी विश्वास है। गाजीपुर जिले के मोहनपुरा गांव में एक किसान परिवार में एक जुलाई 1959 को जन्मे 61वर्षीय श्री सिन्हा ने छात्र जीवन सिन्हा से राजनीति में कदम रखने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव के प्राथमिक विद्यालय से प्रारंभिक पढ़ाई करने के उपरांत आगे की शिक्षा के लिए देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय बीएचयू पहुंचे। वाराणसी में ही आईआईटी की उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद यहीं से छात्र राजनीति में पदार्पण किया। वह 1982 में बीएचयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने। आईआईटी करने के बाद श्री सिन्हा को कई अच्छी नौकरियों की पेशकश आईं किंतु उन्होंने जीवन में राजनीति को चुना। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के झंडे तले श्री सिन्हा का राजनीतिक कद बढ़ता ही गया। वह धीरे-धीरे पूर्वांचल की राजनीति का बड़ा चेहरा बन गये। वर्ष 1989 से 1996 तक भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहने के बाद 1996 में पहली बार गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे वह 1998 का लोकसभा चुनाव हार गए किंतु 13 माह बाद 1999 में हुए चुनाव में दूसरी बार जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद करीब 15 साल तक उन्हें चुनावी जीत का वनवास भोगना पड़ा। भाजपा ने 2014 का आम चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा और श्री सिन्हा जीतकर लोकसभा पहुंचे। वर्ष 2014 में रेल राज्यमंत्री और उसके साथ ही संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के पद पर उन्होंने प्रशासनिक दक्षता और राजनीतिक क्षमता का बखूबी परिचय दिया। डाकघर बैंक की स्थापना और पूर्वांचल सहित देश भर में रेलवे के ढांचे में सुधार एवं विस्तार के लिए संतोषजनक परिणाम दिखाने से प्रधानमंत्री श्री मोदी का भरोसा उनमें और मजबूत हुआ। वाणी एवं व्यवहार में संयम और शब्दों के चयन में सावधानी उनके व्यक्तित्व को गंभीरता एवं ऊंचाई देने में सहायक हुई। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से सतत संवाद ने उनकी राजनीतिक दृष्टि को व्यापक एवं सर्व स्वीकार्य बनाने में मदद की। उत्तर प्रदेश के 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जब प्रंचड जीत हासिल की तो श्री सिन्हा का नाम मुख्यमंत्री के रूप में आगे था किंतु अंतिम समय में बाजी योगी आदित्यनाथ के हाथ लगी। पर वर्ष 2019 का आम चुनाव वह बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के हाथों हार गए और फिर राजनीतिक परिदृश्य से दूर हो गये। लेकिन सवा साल बाद ही न केवल राष्ट्रीय राजनीति बल्कि क्षेत्रीय भूराजनीतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील जम्मू-कश्मीर की बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने से साबित हो गया कि उनमें शीर्ष नेतृत्व का विश्वास पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है।
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