published by saurabh
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गोरखपुर(ST News): सेवानिवृत्त मेजर जनरल एके चतुर्वेदी ने मंगलवार को कहा कि भारत की संस्कृति में राष्ट्र हमेशा से सर्वोपरि रहा है। श्री चतुर्वेदी ने यहां महाराणा प्रताप पी.जी. कालेज जंगल धूसड़ में ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ की 51वीं तथा राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ की छठवीं पुण्यतिथि के मौके पर आनलाइन साप्ताहिक व्याख्यानमाला के दूसरे दिन कहा कि भारत की संस्कृति में राष्ट्र हमेशा से सर्वोपरि रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिवेश में राष्ट्र की अखण्डता और संरक्षण के प्रति समर्पण का भाव भारत के सन्तों से लेकर सेना तक प्रत्येक व्यक्ति के लिए अमूल्य रहा है। उन्होंने कहा कि श्री गोरक्षपीठ हमेशा से ही आध्यात्मिक साधना के साथ राष्ट्रपूजा को अपने उपासना पद्धति का हिस्सा बनाए रखा है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भी और स्वंतत्रता प्राप्ति के पश्चात भी राष्ट्रपूजा की उनकी उपासना अखण्ड गति से प्रज्ज्वलित हो रही है।
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महन्त दिग्विजयनाथ ने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय सहभाग करते हुए राष्ट्र रक्षा के प्रति गोरक्षपीठ की स्पष्ट दृष्टि प्रस्तुत कर दी थी और उनके सम्पूर्ण जीवन काल में भारत की एकता अखण्डता और राष्ट्रीय सुरक्षा का शायद ही कोई ऐसा अवसर हो जिसपर उन्होेने सेवा के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अपना स्पष्ट मत न रखा हो। मेजर जनरल ने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ का स्पष्ट मत था कि राष्ट्र की अनवरत स्वाधीनता के लिए प्रतिरक्षा व्यवस्था को लगातार सुदृढ़़ और अत्याधुनिक किया जाना चाहिए। किसी भी राष्ट्र की अखण्ड स्वतंत्रता में सुदृढ़ सैनिक शक्ति और उच्चीकृत सैन्य साधनों की विशेष भूमिका होती है। महन्त दिग्विजयनाथ का स्पष्ट विचार था कि शिक्षण संस्थाओं में सैनिक तैयार करने की प्रक्रिया प्रारम्भ की जानी महत्वपूर्ण है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किसी भी कीमत पर कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उनका मानना था कि राष्ट्र की सुरक्षा में सैनिकों के साथ समाज का भी सक्रिय रूप से योगदान होता है।
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