published by saurabh
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कानपुर(St News): करीब तीन दशकों तक राजनीति क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाली कमलरानी वरूण मृदुल और मिलनसार स्वभाव के कारण कानपुर और आसपास के क्षेत्र में बहन जी के नाम से जानी जाती थी। दो बार लोकसभा और एक बार विधानसभा की दहलीज लांघने वाली श्रीमती वरूण ने मदद मांगने वाले किसी भी शख्स को निराश नहीं किया। क्षेत्र में बुजुर्ग उन्हे बहू तो बराबर अथवा छोटे बहनजी कह कर संबोधित करते थे। योगी सरकार में मंत्री का पद संभालने के बावजूद घमंड उन्हे छूकर भी नहीं गया था। जिम्मेदार पदों पर रहने के बावजूद वह कुशल गृहणी का दायित्व बखूबी निभाती रहीं।
तीन मई 1958 को जन्मी कमल रानी वरुण का विवाह 25 मई 1975 को द्वारिकापुरी मोहल्ले के निवासी एलआईसी अधिकारी किशन लाल वरुण से हुआ था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े किशन लाल के प्रोत्साहन से ही उन्होने राजनीति में रूचि लेनी शुरू की और वर्ष 1989 में वह पहली बार उन्होने पार्षद का टिकट हासिल किया जिसमें वह विजयी हुयी जबकि 1995 में वह दोबारा उसी वार्ड से पार्षद निर्वाचित हुई थीं।
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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 1996 में उन्हेंं घाटमपुर (सुरक्षित) संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतारा जिस पर उन्होने अप्रत्याशित जीत हासिल की। दो साल बाद श्रीमती वरूण एक बार फिर इसी सीट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची हालांकि अगले साल यानी 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्हेंं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रत्याशी प्यारेलाल शंखवार के हाथों मात्र 585 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। बतौर सांसद उन्होने कमलरानी ने श्रम कल्याण , उद्योग, महिला सशक्तिकरण, राजभाषा व पर्यटन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समितियों में रहकर काम किया था।
वर्ष 2012 मे हुये विधानसभा चुनाव में कानपुर देहात की रसूलाबाद सीट से भाजपा के टिकट पर मौका दिया गया लेकिन वह यह चुनाव हार गयी। इस बीच 2015 में उनके पति की बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी। वर्ष 2017 में वह घाटमपुर सीट से भाजपा की पहली विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंची थीं। पिछले साल उन्हे प्राविधिक शिक्षा मंत्री का प्रभार दिया गया था। उनकी पुत्री स्वपनिल वरूण कानपुर के एक सरकारी विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर है। साकेत नगर में रहने वाली स्वपनिल के दो बच्चे हैं।
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