कश्मीर मसले पर ओआइसी प्रस्ताव के मायने, यूएन देश करें शांति की संस्कृति का विकास

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Published by Aprajita

कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण करने के प्रयासों को भारत बहुत संवेदनशीलता के साथ लेता है। इस मसले पर भारत सरकार की भूमिका को विवादास्पद बनाने के हर प्रयासों के प्रति भी भारत सतर्क रहा है। इसी क्रम में हाल ही में कश्मीर मुद्दे पर ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन द्वारा प्रस्ताव रखने और उस पर भारत विरोधी वक्तव्य जारी करने का काम किया गया है, जिसका भारत ने कड़े शब्दों में विरोध किया है। दरअसल नाईजर में आयोजित ओआइसी की बैठक में जिन प्रस्तावों को अंगीकृत किया गया है, उसमें कश्मीर पर अपनाए गए प्रस्ताव में कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ अत्याचार किया गया है।

भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीर में मानवाधिकार का उल्लंघन किया गया है। इस पर भारत सरकार के विदेश मंत्रलय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ओआइसी के ऐसे प्रस्तावों से केवल एक देश पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध अभियान चलाने में मदद भर मिल सकती है और पाकिस्तान को ऐसे किसी प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद पर ओआइसी को पुनíवचार करना चाहिए। भारत सरकार का कहना है कि यह बड़े खेद का विषय है कि ओआइसी जैसा संगठन स्वयं को पाकिस्तान के हाथों इस्तेमाल किए जाने वाला एक मोहरा बना रहा है और उसे अपना समर्थन देना जारी रखे हुए है। पाकिस्तान स्वयं धाíमक असहिष्णुता, कट्टरता और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार को बढ़ावा देने वाला देश है।ओआइसी द्वारा कश्मीर या अल्पसंख्यक अत्याचार के प्रश्न पर दिया गया बयान कोई पहला अवसर नहीं है जब भारत सरकार की नीतियों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया गया है। भारत सरकार ने जिस नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के जरिये उत्पीड़ित हिंदुओं को मानवतावादी हस्तक्षेप और सहायता के नाम पर नागरिकता देने का निर्णय किया था, उस पर 57 मुस्लिम देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन ने प्रश्नचिह्न् खड़े किए थे। पाकिस्तान ने तो अमेरिका द्वारा अपनी पिछले वर्ष जारी धाíमक स्वतंत्रता रिपोर्ट के आधार पर स्वयं को ब्लैकलिस्ट किए जाने का विरोध करते हुए कहा था कि अमेरिका को भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के संगठित स्तर पर दमन को देखते हुए पाकिस्तान के बजाय भारत सरकार को ब्लैकलिस्ट करना चाहिए। इसी क्रम में मलेशिया ने भी भारत पर प्रश्न खड़े किए थे।

मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने पिछले वर्ष क्वालालंपुर शिखर सम्मेलन में भारत के नए नागरिकता कानून की आलोचना की थी। अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि यह देखकर दुख हो रहा है कि जो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होने का दावा करता है, वह कुछ मुसलमानों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की कार्रवाई कर रहा है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस ने भारत में सीएए के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों और अयोध्या मामले पर आए फैसले को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। अपने बयान में ओआइसी ने कहा कि वह बारीकी से भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर नजर बनाए हुए है। यह संगठन चूंकि मुस्लिम विश्व की सामूहिक आवाज के रूप में माना जाता है, इसलिए इसके किसी निर्णय का भारत के मुस्लिम हितों के संबंध में प्रभाव पड़ने की उम्मीद से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। भारत की आजादी के बाद से कुछ ऐसे ठोस निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की जरूरत थी, जो विभाजक राजनीति को दूर कर देश को समावेशी विकास के रास्ते पर ले जा सकें।

ओआइसी और आतंकवाद संबंधी मुद्दा : भारत ने वर्ष 1996 में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर जिस व्यापक अभिसमय को अपनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव रखा था, वह भी अमेरिका और इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों तथा कुछ लैटिन अमेरिकी देशों के विरोध और मतभेद के चलते अभी तक अंगीकृत नहीं किया जा सका है। इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों के द्वारा इस अभिसमय के विरोध के चलते यह कार्यशील नहीं हो सका है। इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों का मानना रहा है कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलनों को आतंकवाद की परिभाषा से बाहर रखा जाए। पाकिस्तान जैसे देश आतंकियों को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखते हैं और आतंकी कृत्य को एक धर्म युद्ध के रूप में। पाक अधिकृत कश्मीर में आजादी की लड़ाई को पाकिस्तान एक जिहाद के रूप में देखता है। इसलिए वह भारत द्वारा प्रस्तावित इस अभिसमय का विरोध करता है।

 

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