लखनऊ;अगर आप लखनऊ से सुलतानपुर की तरफ जा रहे हैं तो गोसाईगंज पहुंचते ही आपको सड़क किनारे का अलग ही नजारा दिखने लगेगा। यहां सिंघाड़ा की मंडी लगती है। कच्चा सिंघाड़ा तो यहां मिलता ही है तो उबला सिंघाड़ा बिकता है। आसपास के तालाबों से सिंघाड़ा लाने वाले यहां के निवासियों के लिए यह रोजगार का बहुत बड़ा साधन है। यहां सड़क किनारे जगह-जगह चूल्हा बनाकर सिंघाड़ा को उबाला जाता है और फिर उसे छिलकर बेचा जाता है।
हरी धनिया व मिर्च की चटनी के साथ यहां सिंघाड़ा खाने वालों की भीड़ दिखती है। खास यह है कि कोरोना काल में भी सिंघाड़ा का धंधा मंदा नहीं पड़ा है। सिंघाड़ा पानी की फसल होने के कारण हमेशा पानी जरुरत बनी रहती है। पौध तैयार करने से लेकर फसल तैयार होने तक तालाब में पानी की उपलब्धता बनाई रखी जाती है। करीब चार महीने में तैयार होने वाली सिंघाड़े की फसल की पौध जेठ व आषाढ़ महीने से डाली जाती है। सिंघाड़े की पौध तैयार करने के लिए फसल समाप्त होने के साथ ही सिंघाड़े की बोआई कर दी जाती है। पौध तैयार होने के बाद बड़े तालाबों में डाल कर उसमें रसायनों का छिड़काव भी किया जाता है।
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गोसाईगंज इलाके में देशी व कटना दो किस्म के सिंघाड़ों की खेती की जाती है। गोसाईगंज में ही सुलतानपुर मार्ग के किनारे इंदिरा नहर के समीप सिंघाड़े की दुकानें लगती है और यहां कई बीघे तालाब होने के कारण सिंघाड़े की उपलब्धता अधिक है। सिंघाड़े की खेती करने वाले रहमतनगर के कन्हैयालाल, मोहम्मदपुर गढ़़ी के हनोमान, अमेठी के मनोज, गोसाईगंज के श्रवण, राजेश, संतोष, भल्लू, रघुवर व विजय बताते हैं कि उबला सिंघाड़ा की अधिक मांग होती है और लोग खाने के साथ ही कई किलो घर ले जाते हैं। इस सिंघाड़े को फ्राई करने से भी खाने में मजा आता है।