अयोध्या की चौदह कोसी परिक्रमा 23 नवम्बर से,सभी तैयारी पूरी

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Published By Anant Bhushan

अयोध्या जिला प्रशासन ने 23 नवम्बर से शुरु हो रही प्रसिद्ध चौदह कोसी परिक्रमा की तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं और चौबीस घंटे चलने वाली यह परिक्रमा सोमवार को एक बजकर छप्पन मिनट से शुरू होगी।
पुलिस अधीक्षक (नगर) विजय पाल सिंह ने आज यहां यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि चौदह कोसी परिक्रमा मेले की तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं। जिला प्रशासन की तरफ से श्रद्धालुओं से अपील की जा रही है कि कोविड-19 को देखते हुए कम से कम लोग परिक्रमा करें। उन्होंने बताया कि जिले की सीमाओं पर बैरियर लगा करके किसी भी श्रद्धालु को परिक्रमा करने से मना तो नहीं किया जा रहा है लेकिन यह जरूर कहा जा रहा है कि इस बार परिक्रमा में कम से कम लोग भाग लें।
उन्होंने कहा कि जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के ही लोग ही भाग लें जिससे कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन कराया जा सके। उन्होंने बताया कि सुलतानपुर, अंबेडकरनगर, गोंडा, बस्ती, बाराबंकी जिले की सीमा में बैरियर लगा करके जांच करने के उपरान्त ही लोगों को अयोध्या में प्रवेश दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि परिक्रमा मार्ग पर कोविड-19 का विशेष ध्यान देते हुए जगह-जगह पर सोशल डिस्टेंसिंग, सेनिटाइजर का इस्तेमाल किया जायेगा। सुरक्षा व्यवस्था को ले करके जिला प्रशासन सतर्क है। जगह-जगह पर पुलिस बल तैनात किये गये हैं। चौदह कोसी परिक्रमा 24 नवम्बर को प्रात: 2.50 पर समाप्त होगी।
श्री सिंह ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा मेला 29 नवम्बर को दोपहर 12.17 बजे से सरयू स्नान शुरू होगा। इसके लिये भी विशेष तैयारियां की गयी हैं। उन्होंने बताया कि कोविड-19 को देखते हुए जिला प्रशासन ने सरयू तट पर स्नान का भी सोशल डिस्टेंसिंग सेनिटाइजर का भी व्यवस्था किया है। श्रद्धालु स्नान करने के बाद प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर, नागेश्वर नाथ मंदिर, कनक भवन मंदिर के साथ ही श्रीराम जन्मभूमि पर विराजमान रामलला के दर्शन करते हैं। ऐसी जगहों पर भी प्रशासन ने सोशल डिस्टेंसिंग और सेनिटाइजर का भी व्यवस्था की है। साथ ही साथ सुरक्षा व्यवस्था के कड़े प्रबंध किये गये हैं।
उन्होंने बताया कि अयोध्या की सीमा में वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा। यातायात व्यवस्था को सुगम बनाने के लिये मार्ग में बदलाव किया गया है। यह व्यवस्था परिक्रमा समाप्ति तक रहेगी। गोरखपुर से अयोध्या होकर बाराबंकी या लखनऊ जाने वाले सभी प्रकार के वाहन हाईवे होकर गंतव्य को जायेंगे। उन्होंने बताया कि आवश्यकतानुसार यातायात को बस्ती बाईपास से उतरौला रोड पर मोड़ दिया जायेगा। लखनऊ से गोरखपुर जाने वाले वाहन हाईवे से होकर जायेंगे तथा आवश्यकता के अनुसार यातायात को रामनगर चौराहा बाराबंकी से गोंडा मार्ग पर डायवर्ट किया जायेगा। उन्होंने बताया कि इसी तरह लखनऊ अयोध्या रोड से आने वाले सभी प्रकार के वाहनों को बूथ नंबर एक सहादतगंज से शहर की ओर प्रवेश पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा और भारी वाहनों को थाना रौनाही के सामने रोका जायेगा।
पुलिस अधीक्षक ने बताया कि रायबरेली अयोध्या रोड पर आने वाले वाहनों का अग्रसेन चौराहे से शहर की ओर प्रवेश पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा। सुलतानपुर-अयोध्या रोड पर वाहनों का शांति चौक से अयोध्या की ओर प्रवेश पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा। सभी वाहन हाईवे की ओर मोड़ दिये जायेंगे। आवश्यकतानुसार भारी वाहनों को पूराकलन्दर थाने की ओर रोक दिया जायेगा।
मान्यताओं के मुताबिक बड़ा परिक्रमा अर्थात चौदह कोसी परिक्रमा का सीध संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से है। किवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से अपने को जोड़ते हुए अयोध्यावासियों ने प्रत्येक वर्ष के लिये एक कोस परिक्रमा की होगी। इस प्रकार चौदह वर्ष के लिये चौदह कोस परिक्रमा पूरा किया होगा। तभी से यह परम्परा बन गयी और उस परम्परा का निर्वाह करते हुए आज भी कार्तिक की अमावस्या अर्थात् दीपावली के नौवें दिन श्रद्धालु यहां आकर करीब बयालिस किलोमीटर अर्थात् चौदह कोस की परिक्रमा एक निर्धारित मार्ग पर अयोध्या और फैजाबाद नगर तक चौतरफा पैदल नंगे पांव चलकर अपनी-अपनी परिक्रमा पूरी करते हैं। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शुरू होने वाले इस परिक्रमा में ज्यादातर श्रद्धालु ग्रामीण अंचलों से आते हैं। यह एक-दो दिन पूर्व ही यहां आकर अपने परिजनों व साथियों के साथ विभिन्न मंदिरों में आकर शरण लेते हैं और परिक्रमा के एक दिन निश्चित समय पर सरयू स्नान कर अपनी परिक्रमा शुरू कर देते हैं, जो उसी स्थान पर पुन: पहुंचने पर समाप्त होती है।
परिक्रमा में ज्यादातर लोग लगातार चलकर परिक्रमा पूरा करना चाहते हैं। क्योंकि रुक जाने पर मांसपेशियों पर खिंचाव आ जाने से थकान का अनुभव जल्दी होने लगता है। यद्यपि श्रद्धालुओं में न रुकने की चाह रहती है फिर भी लम्बी दूरी की वजह से रुकना तो पड़ता है। विश्राम के लिए रुकने वालों में ज्यादातर अधिक उम्र के लोग रहते हैं। इनके विश्राम के लिये जिला प्रशासन के अलावा तमाम स्वयंसेवी संस्थायें आगे आकर जगह-जगह विश्रामालय, नि:शुल्क प्रारंभिक चिकित्सा केन्द्र व जलपान गृहों का इंतजाम करती हैं। श्रद्धालु औसतन अपनी-अपनी परिक्रमा करीब छह-सात घंटें में पूरी कर लेते हैं।

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