published by saurabh
इसे भी देंखें–https://www.youtube.com/watch?v=m0_Caa0LIhc&t=20s
प्रयागराज(ST news): तीर्थराज प्रयाग में पुत्र की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रविवार को ललही छठ पर्व पर विधि विधान से पूजन-अर्चन कर पुत्र की कुशलता की कामना किया। ललही छठ का उत्तर भारत के पूर्वी इलाके में बहुत महत्व है। भादो महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ मनाया जाता है। ललही छठ को वैसे तो कई नाम है लेकिन पूर्वी उत्तर भारत में इसे ललही छठ कहा जाता है। इस व्रत को हलषष्ठी, हलछठ , राधन छठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर छठ, या खमर छठ के नाम से भी जाना जाता है। शिक्षिका विनोदनी पाण्डेय ने बताया कि परिवार की समृद्धि और पुत्र की दीर्घायु कामना को लेकर महिलाएं यह उपवास करती हैं। महिलाओं ने छठ पूजन के लिए कुश और पलाश के पत्तों का गाड़ कर सामने दो छोटे छोटे गड्ढे खोदकर उसमें पानी भरकर पुत्र के आंख मुंह को धोकर उसी जल को सिर पर छिड़कती है उसके बाद उनके आंखों में काजल लगाती है। महुआ के पत्ते पर महुआ, तिन्नी चावल, चावल, सुपारी, दूब, सिंदूर, फल, फूल आदि पूजन सामग्री रख कर पूजन अर्चन किया। उन्होने बताया कि इस पर्व से कई प्रकार की कहानियां भी जुड़ी हैं। इस व्रत के दौरान पसाई धान के चावल एवं भैंस के दूध का इस्तेमाल करती हैं।
यह भी पढ़े– https://sindhutimes.in/aroused-influx-of-curious-devotees-in-ayodhya/
इस दिन गाय का दूध और दही उपयोग नहीं की जाती है।महिलाएं महुआ के दातुन से दांत साफ करती हैं। इस व्रत का समापन भैंस के दूध से बने दही से और महुवा को पलाश के पत्ते पर खाकर किया जाता है। मान्यता है कि हरछठ के दिन निर्जला व्रत किया जाता है और शाम को पसही के चावल या महुए का लाटा बनाकर व्रत का पारण किया जाता है। इस पूजन का आधार पुरातन है जो पूर्वांचल के साथ ही साथ अनेक जगहों का एक श्रद्धा युक्त त्योहार है। मानव का प्रकृति के साथ का अजेय रिश्ता इस पर्व में हूबहू झलकता है जो यह उजागर करता है कि हमारे पूर्वज प्रकृति को पूजने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। जिन परमपराओं का उसी रूप में आज भी हम लोग सम्मान और श्रद्धा से निर्वहन कर पूर्वजीय प्रणाली से जुड़े हुए है। आधुनिकता से सराबोर नजरें इसे अजीब दृष्टि से देखती हैं और तर्कविहीन आलोचनाएं भी करती हैं । गौरतलब है कि इस दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। इसे बलराम जयंती भी कहते हैं। हलषष्ठी का व्रत केवल पुत्रवती महिलाएं ही रखती हैं। इस दिन माताएं अपने पुत्र की लंबी उम्र की कामना करती हैं। भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष षष्ठी को हलषष्ठी पूजा की जाती है। इस दिन हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का उपयोग नहीं किया जाता है।
कृषि से संबन्धित समाचारों के लिए लागइन करें–http://ratnashikhatimes.com/