published by saurabh
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नयी दिल्ली (वार्ता): उच्चतम न्यायालय ने नये संसद भवन से संबंधित महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा परियोजना को दी गई पर्यावरणीय मंज़ूरी को चुनौती देते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करने की बुधवार को अनुमति प्रदान कर दी। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान से कहा कि उनके मुवक्किलों को 17 जून को दी गयी पर्यावरणीय मंजूरी को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाएगा। केंद्र सरकार को उस याचिका की प्राप्ति के एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करना होगा। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि यह परियोजना किसी निजी उद्योग से जुड़ा नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय हित से जुड़ा है।
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श्री मेहता ने एक फैसले के हवाले से कहा कि सार्वजनिक कानून के मुद्दों को अति उत्साह के कारण नहीं अटकाया जा सकता। उन्होंने कहा कि मुकदमे के कारण इस महत्वाकांक्षी परियोजना में देरी हो रही है। उधर याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश श्याम दीवान ने कहा कि संसद के नाम पर एक लाख वर्ग मीटर की टाउनशिप बनाई जा रही है। कोई भी नागरिक किसी परियोजना पर सवाल उठा सकता है। सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि वह केवल ‘लैंड यूज’ में बदलाव को चुनौती देने वाले पहलुओं पर ही विचार करेगी, लेकिन श्री दीवान ने गत 17 जून को दी गई पर्यावरणीय मंज़ूरी की वैधता को चुनौती देते हुए दलीलें जारी रखीं। शीर्ष अदालत ने सेंट्रल विस्टा परियोजना को चुनौती देने वाली दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था। शीर्ष अदालत ने 17 अगस्त से शुरू होने वाले सप्ताह में मामले की सुनवाई के संकेत दिये।
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