लखनऊ! हज़ारो साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन मे देदावार पैदा.
जी हाँ आज हम बात कर रहे है शहर की उस ऐतिहासिक इमारत की जो गवाह है अंग्रेजी ज़ुल्मों की जो गवाह है की देश की आजादी मे लखनऊ वासियों का भी योगदान कम नहीं रहा है, साल था 1860 का जब अंग्रेजो के ज़ुल्म अपने चरम पर थे,हद ये थी की जिन लोगो के पूर्वजो ने शहर को बसाया और उसको सजाया पर उन्ही लोगो को उन इमारतो मे जाना मना था तो आम हिंदुस्तानी की तो बात दूर की इन्ही सब बातो को ध्यान मे रखते हुए लखनऊ के नवाबो ने आम हिन्दुस्तानियों के लिए उनकी खुद की इमारत बनवा दी ताकि आम जनता भी अपना मनोरंजन कर सके ये इमारत सिटी स्टेशन के निकट रिफे आम क्लब के नाम से आज भी मौजूद है पर आज की उसकी मौजूदगी देखने लायक नहीं है किस शानो शौकत से ये ईमारत बनी थी पर आज उतनी ही बुरे हालत मे है.
रिफे आम क्लब सिर्फ एक क्लब ही नहीं था बल्कि आजादी के लड़ाई के दौरान ये देश की आजादी के लिए लड़ने वालो का केंद्र भी था, इसी इमारत मे स्वदेशी मूवमेंट की अनेक मीटिंग और जनसभाएं भी हुई जिसमे देश के बड़े बड़े देश भक्त नेताओं ने हिस्सा लिया यही नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सरदार पल्लभ भाई पटेल जैसे नेता भी इस इमारत मे लोगो को हिन्दू मुस्लिम एकता पर सम्बोधित कर चुके है.
पर आज ये इतिहासिक इमारत अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है इमारत के चारो और लोगो ने कब्ज़ा कर लिया है जहाँ एक तरफ कबाड़ वालो का कब्ज़ा है वही दूसरी तरफ लोगो ने कब्ज़ा कर दुकाने बना ली है किसी समय मे रिफे आम क्लब की हद मे पेट्रोल पम्प के सामने एक कूड़ा घर हुआ करता था पर आज उस कूड़ा घर की जगह पर गैराज बना हुआ, इमारत इतने बुरे हाल मे है के कोई भी हिस्सा किसी भी समय गिर सकता है.
पर इस इमारत पर ना ही सरकार की नज़र पड़ रही है और ना ही जिला प्रशाशन की इस इमारत को बचाने के लिए शहर के आम लोगो को ही आगे आना होगा क्यूंकि ये इमारत इन्ही आम लोग के लिए बनवायी गई थी.